Gulabo - 1 in Hindi Women Focused by Neerja Pandey books and stories PDF | गुलाबो - भाग 1

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गुलाबो - भाग 1

दूर से आती लाठी की ठक ठक की आवाज सुनकर रज्जो और गुलाबो चौकन्नी हो गई। दोनों ऊपर छत पर से
पड़ोसी की बहू के संग अपना अपना दुखड़ा एक दूसरे से साझा कर रही थी। जैसे ही लाठी की आवाज कान में गई। बोली अच्छा बहन अब हम जाती है अम्मा आ गई है । अगर उन्हें भनक भी लग गई कि हम दोनो छतपर गए थे तुमसे बात कर रहे थे तो आज पिट जाएगी हम दोनों हीं।ये कहते हुए दोनों दौड़ते हुए नीचे आई और जल्दी जल्दी काम निपटाने का दिखावा करने लगी।
दरवाजे पर पहुंचते ही जगतरानी जोर जोर से दरवाजा पीटने लगी। रज्जो भागती हुई आई और दरवाजा झट से खोल दिया। इतनी देर लगती है खोलने में ? घूरती हुई जगतरानी ने पूछा डर के मारे रज्जो ने कोई जवाब नहीं दिया कहीं अम्मा लाठी ना बरसा दे। रज्जो अम्मा के पांव धुलाने लगी तब तक गुलाबो गुड़ और पानी लेकर आई।पानी पीकर जगतरानी लेट गई। थोड़ी देर बाद रज्जो पास आईं और पूछा अम्मा खाना लाऊं हा कहने पर सारी चीज़ें उठकर लाई। जगतरानी ऊठ कर नीचे पीढ़े पर बैठ गई और रज्जो और गुलाबो दोनों की थाली में थोड़ा थोड़ा सा खाना डालकर शेष बचा हुआ खुद की थाली में निकाल कर खाने बैठ गई। रज्जो और गुलाबो कभी अपनी थाली देखें तो कभी अम्मा को कभी एक-दूसरे को। आज फिर से दोनों को आम्मा ने थोड़ा सा हीं खाना दिया था। दोनों दुःखी मन से खाने धीरे धीरे खाने लगी और मनह हीं मन सोच रही थी आज भी भर पेट खाना अम्मा ने नहीं दिया।
जगतरानी की उम्र लगभग पचपन साल होगी। उसके पति और दोनों बेटे परदेस में नौकरी करते थे। यहां गांव में वो दोनों बहुओं के साथ रहती थी और घर और खेतों की देखभाल करती थी। वो सिर्फ नाम की जगतरानी नहीं थी वो वाकई में खुद को जगतरानी हीं समझती थी।मजाल है उसके इशारे के बिना एक पत्ता भी इथर से ऊधर हो जाए
नपा तुला चावल दाल देकर खेत पर जाती थी। उसके आने के बाद ही खाने की इजाजत थी।वो भी जगतरानी के देने पर।एक दो बार उन्होंने बिना आए खा लिया फिर जो पिटाई हुई कि कभी हिम्मत नहीं हुई। पूरे घर की चाभी हमेशा कमर में टंगी रहती।ना ही उन्हें बिना पूछे छत पर जाने की इजाजत थी और ना ही किसी से बात करने की।
खैर दोनो ने भोजन समाप्त किया फिर बरतन साफ कर आंखें बंद कर लेट गई। कुछ देर बाद गुलाबो ने धीरे-धीरे दीदी ओ दीदी दीदी सो गई क्या । ना रे छोटी नींद कहां से आएगी आंतें भूख से कुलबुला रही है। गुलाबो जो बड़ी चंचल थी। चाहे जितनी भी सजा मिले वो खुराफात से बाज नहीं आती थी। रज्जो के भूख लगने पर कहीं सास को चकमा देकर बाग से अमरूद या जो भी फल मिलता तोड़ लाती। झट से उठकर बैठ गई और रूको दीदी कहती हुई उछल कर कमरे के बाहर चली गई दबे कदमों से धीरे धीरे गई और झांक कर देखा जगतरानी खूब खर्राटे ले कर सो रही थी। ( जब ज्यादा खा लो तो पेट भारी हो जाता है फिर नींद भी अच्छी आती है।) और कमर पे टंगी हुई चाभी जो शायद चुभने की वजह से बगल में रख कर अपने हाथों से पकड़ कर सो रही थी। झांक कर गुलाबो उछलती हुई आई और बोली दीदी अम्मा सो रही हैं। मेरे पास तुम्हारे भूख का जुगाड़ है। ना बाबा ना मुझे अम्मा की लाठी नहीं खानी कहते हुए रज्जो ने अपने हाथों से दोनों कान पकड़ लिए। रज्जो के और करीब आकर गुलाबो फुसफुसाते हुए बोली । दीदीअम्मा सारा काम हमसे करातीं है और खाने-पीने को भी हमें जरा सा देकर सारा खुद चट कर जाती है।हम अगर जरा सा इधर उधर कर ले तो भगवान थोड़ी ना गुस्सा होगा ऊपर देखकर मासूमियत से बोली। दो दिन पहले जगतरानी ने बहुओं से जातें पर चने और जौ का सत्तू पिसवाया था। दोनों को चखने को भी ना देकर सारा का सारा भंडारी (मिट्टी की दीवार में बनी आलमारी ) में रख कर जहां पहले से ही ताजा गुड़ भी रक्खा था, के साथ रख दिया। दोनों ललचाई नज़रों से देखती ही रह गई। तभी से गुलाबो का सारा ध्यान भंडारी पर हीं था। गुलाबो अठारह साल की चंचल युवती थी। उसकी बड़ी-बड़ी मासूम आंखें अपनी हर शरारत में रज्जो को शामिल कर लेती। ना चाहते हुए भी उसका अनुनय-विनय रज्जो को राजी कर लेता।
दीदी अम्मा गहरी नींद में सो रही है चलो ना सत्तू और गुड़ निकालते हैं। मुझे उसकी सोंधी-सोंधी खुशबू अभी भी आ रही है। रज्जो को जबरन उठा कर बोली दीदी बस तुम मेरे साथ रहो। मैं आहिस्ता आहिस्ता निकाल लूंगी अम्मा को पता भी नहीं चलेगा। दोनों धीरे धीरे पांव रखते हुए चल रही थी कि जरा सी भी आवाज ना हो।नींद में ही जगतरानी का हाथ चाभी से हट गया था। गुलाबो ने चाभी उठाई और भंडारी धीरे से खोला । जल्दी सत्तू रज्जो के पकड़े थाली में डालने लगी। अब गुड़ के लिए हाथ अंदर डाला। पहले एक निकाला फिर सोचा एक और ले लेती हूं बाद में खाने के काम आएगा। उसके हाथ छोटे-छोटे थे दोनों गुड़ समा नहीं रहे थे।ऊपर से घबराहट भी थी कि कहीं अम्मा जाग ना जाए। जैसे हाथ जगतरानी के चेहरे के ऊपर आया जगतरानी को छींक आ गई । उसके छींकते हीं गुड़ गुलाबो के हाथ से छूट गया और सीधा जगतरानी के नाक पे गिरा। बड़ा-सा गुड़ नाक पर गिरते ही जगतरानी दर्द से चिल्ला से उठी और उठकर बैठ गई उसे समझ नहीं आ रहा था क्या हुआ ।जब दर्द कुछ कम हुआ और गुलाबो रज्जो को खड़े देखा फिर गिरा हुआ गुड़ देखा तब पूरा माजरा समझ आया।समझ आते हीं पास पड़ा डंडा उठाया। डंडा देखते हीं गुलाबो और रज्जो भागने लगीं । नहीं अम्मा नहीं हमें माफ कर दो। दोनों आगे आगे अम्मा पीछे पीछे कहते हुए करमजलियों आज नहीं छोडूगी।